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नारी विमर्श >> न्यायक्षेत्रे : अन्यायक्षेत्रे

न्यायक्षेत्रे : अन्यायक्षेत्रे

अरविन्द जैन

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2002
पृष्ठ :275
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14104
आईएसबीएन :9788126704125

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यह पुस्तक उन तमाम औरतों की आवाज है, जिन्होंने समाज व परिवार के डर से कभी मुँह खोलने के बारे में सोचा तक नहीं।

'औरत के साथ क्या-क्या और कैसी-केसी ज्यादतियाँ हुई हैं और हमारा कानून भी इस मामले में आधा-अधूरा है, यह तुमने पढ़कर जाना और स्त्री ने भोगकर।'' -मन्‍नू भंडारी ''यह एक तकलीफदेह किताब है। इसे पढ़ने के बाद कई भोले भरोसे टूटते हैं और नए मोर्चे खुलते हैं। यदि कोई सामान्य स्त्री इसे पड़ेगी तो वह अपनी तकलीफ के उस समूचे जंजाल को समझ सकेगी जो मर्दों ने कानून के नाम पर उसे फाँसे रखने'के लिए बनाए हैं।'' -सुधीश पचौरी'' अदालती फैसले पर लगे प्रश्नचिह्नों के साथ ही अनेक कानूनी विसंगतियों, अन्तर्विरोधों को सप्रमाण प्रस्तुत करके विधि से जुड़े लोगों के सामने अनेक गम्भीर प्रश्न उठाकर उसके समाधान के लिए उकसाने का प्रयत्न किया है।'' -राजस्थान पत्रिका'' यह पुस्तक पढ़कर स्वयं को एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र की आधुनिक नारी समझने का नशा हिरण हो जाता है। विश्व सुन्दरी, अधिकारी, प्रबन्धक, वर्किंग वूमेन या घर की लक्ष्मी, जो भी हो, तुम होश में आओ... इस किताब को पढ़ो; आधुनिकता, आजादी और बराबरी के सारे दावों की हवा निकल जाएगी। यह किताब खौफनाक तथ्यों को तह तक उजागर करती है।'' -नई दुनिया ''यह पुस्तक उन तमाम औरतों की आवाज है, जिन्होंने समाज व परिवार के डर से कभी मुँह खोलने के बारे में सोचा तक नहीं। अरविंद जैन का अधिवक्ता होने के साथ-साथ एक संवेदनशील महिलावादी लेखक होना हजारों-लाखों औरतों के पक्ष में जाता है।''

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